लोकतंत्र नहीं, अलगाववाद जीता, पाकिस्तान जीता.
पिछले दिनों जम्मू कश्मीर विधानसभा के चुनाव हुऐ और सभी सत्तासी सीटों के लिये नतीजे या रुझान अब तक बाहर आ गये हैं. कांग्रेस, पीडीपी, नेशनल कांफ्रेंस, बीजेपी वहां मुख्य पार्टियां हैं.
सभी पार्टियां आज सुबह से नतीजों के अनुसार प्रतिक्रिया दे रहीं हैं और इसी सिलसिले में सोनिया और मनमोहन जी ने कहा कि जम्मू कश्मीर में सफल चुनाव हुए हैं, लोकतंत्र की जीत हुई है और हमारे पङोसियों को इससे सबक लेना चाहिये.
लेकिन मैं इस बात से इत्तिफाक नहीं रखता कि जम्मू कश्मीर में लोकतंत्र जीता है. चुनाव सफलता पूर्वक होने या ५० या ६० प्रतिशत लोगों के मतदान करने से लोकतंत्र नहीं जीतता.
वहां जो नतीजे आये हैं उनमें जम्मू और कश्मीर के बीच की राजनैतिक दूरी साफ झलकती है. बीजेपी इस बार पिछले चुनाव के मुकाबले १० सीटों के फायदे में है और जम्मू क्षेत्र में उनका परचम जोरदार लहराया है. अमरनाथ मुद्दे के बाद कश्मीर में अलगाववाद या सच कहें तो पाकिस्तानवाद की आग दो महीनों तक जली और सारे देश ने देखी और उसका प्रतिबिंब आज के नतीजो में साफ दिखायी दे रहा है. जम्मू में बीजेपी पिछले चुनाव की १ के मुकाबले ११ होने वाली है, जाहिर है कि जम्मू की जनता ने बीजेपी को एकमत होके चुना है.
कश्मीर में अमरनाथ का विवाद कैसे हिन्दु मुस्लिम मुद्द्दा बना और उसके बाद कैसे कश्मीर में अलगाववादियों ने उसका पूरा फायदा उठाया सबने देखा. कश्मीर में खुले आम पाकिस्तान समर्थक नारे लगे, पाकिस्तान का झंडा लहराया और लोगों ने पाकिस्तान सीमा की और मार्च किया. अलगाववादी नेताओ के सपने हकीकत के नजदीक पहुंचने लगे.
जाहिर है कि जिस आवाम ने पाकिस्तान के नाम के नारे लगाये उसने भी वोट डाले और किस मुद्दे पर डाले ये बताने की जरुरत नहीं. आज जब नतीजे आये हैं हर पार्टी के नेता ने जो बात सबसे ज्यादा जोर देकर कही है कि बीजेपी के साथ कोई गठबंधन नहीं होगा. बीजेपी यानि कि वो पार्टी जिसको जम्मू के लोगो ने वोट दिये, यानि वो जिनमें हिंदू संख्या मे ज्यादा है, जो पाकिस्तान समर्थक नहीं हैं.
कांग्रेस अगर ये बात करे तो समझ में आता है कि बीजेपी के साथ केंद्र या अन्य राज्यों में मतभेद उसे साथ नहीं जाने दे सकते. लेकिन बाकी क्षेत्रीय पार्टियों के सामने ऐसी क्या मजबूरी है? बीजेपी पिछली बार तो १ सीट के साथ अस्तित्वहीन सी थी तो उनसे क्या मतभेद हैं?? बीजेपी के साथ केंद्र में सत्ता की हिस्सेदारी करते समय फ़ारूख अब्दुल्ला को कोई दिक्कत नहीं थी तो अब क्या बात है? शायद ये कि अभी अलगाववाद हवा कश्मीर में अब ज्यादा तेज बह रही है और ऐसे में बीजेपी का तो नाम भी लेना पाप है.
क्या राज्य की सरकार में जम्मू क्षेत्र की हिस्सेदारी कतई संभव नहीं है? सरकार में शामिल होने के लिये आपको या तो अलगाववादी होना चाहिये या बहरा होना चाहिये.
जाहिर है कि जिन लोगों ने पाकिस्तान समर्थक अलगाववादियों के साथ खुलेआम या चोरीछुपे हाथ मिला रखे हैं वो उस पार्टी के साथ कैसे बैठ सकते हैं जिसको जम्मू के हिदुओ ने वोट दिये हैं.
हो सकता है कि कुछ पढने वालों को इस बात पर आपत्ति हो कि मैं गैर बीजेपी पर्टियों पर अलगाववादियों स हाथ मिलाने का आरोप लगा रहा हूं, लेकिन अगर आप देश की अखंडता पर सवाल उठाने वालों का विरोध नहीं करते या चुप भी रहते हैं तो आप उनके हाथ मजबूत कर रहे हैं, चाहे वो कश्मीर मे हों या मुंबई में, और कांग्रेस तो दोनो जगह इस सवाल पे चुप नजर आती है.
कश्मीर की क्षेत्रीय पार्टियां तो जाहिर है ऐसे लोगों से भरी पङी होंगी, लेकिन कांग्रेस जिसे बाकी देश में भी लोगों को जवाब देना है उसके कश्मीरी नेता गुलाम नवी आजाद ने भी आज टीवी पर बयान दिया कि "जम्मू के हमारे भाइयों ने बीजेपी को वोट देकर अपना वोट जाया किया है".
जरा सोनिया और मनमोहन जी सुनें अपने नेता का बयान, ये सुनने के बाद क्या वो ये कहेगे कि लोकतंत्र जीता है? सत्तासी में से जम्मू की ११ को छोङ दें तो ज्यादातर सीटों पर वो जीते हैं जो भारत की अखंडता के सवाल पर बाकी देश से अलग खङे नजर आते हैं, जिनके लिये कश्मीर भारत का हिस्सा है या नहीं बहस का विषय हो सकता है.
आज आप कश्मीर कि ओर देखें तो इन लोगों में काग्रेस भी खङी नजर आ रही है और सोनिया, मनमोहन भी. अगर कोई कहे कि कश्मीर में लोकतंत्र जीता है तो ऐसी जीत में भारत की संप्रुभता की हार है.
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