Sunday, November 30, 2008

उनका कफन आपके सूट से ज्यादा सफेद कैसे हो सकता है भला ?

लो भाई, सन्डे की दोपहर आखिर खबर आने लगी है कि पाटिल साब अपना बिस्तरा बाॅध रहे हैं, अरे पाटिल साब आज जाने से पहले प्रेस कांफ्रेस करियेगा कि नहीं ?? 

अमाँ यार मजा नहीं आयेगा ऐसे, जाते जाते प्रेस कांफ्रेस जरूर करना ताकि पाकिस्तान से लेके अमेरिका तक सब देखें कि हमारे नेता ऐसे गैर जिम्मेदार नहीं कि कुछ भी होता रहे और कुर्सी पे जमं रहें. और फिर आपने इस आतंकवादी घटना के बाद कोई नया सूट पहन के नहीं दिखाया, अरे ऐसा कैसे चलेगा ? आज तो हम जरुर देखेंगे आपका सूट. और ये आप गैहरे शेड के सूट क्युं पहनते हैं?  आज सफेद भक्क सूट पहनिये, शायद आखिरी मौका होगा आपके लिये. ऐसा सफेद सूट पहिनिये कि जो आपके छोटे भाई आर आर पाटिल की सफ़ेद कमीज से ज्यादा सफेद हो और हवलदार गजेंद्र सिंघ और मेजर संदीप उन्नीकृषनन के कफ़न से भी ज्यादा सफेद हो.  उनका कफन आपके सूट से ज्यादा सफेद कैसे हो सकता है भला ??

और ये देखो मार्केट मे अफ़वाह आ रही है कि देशमुख साहब भी शायद जा सकते हैं. देखा देशमुख साब अगर आप भी कोई समझदारी भरी टिप्प्णी करते और ये साबित कर देते की ऐसी छोटी मोटी घटनायें बङे बङे शहरो में होती रह्ती हैं तो आपसे इस्तीफ़े की मांग कोई न कर पाता. चलो कोई बात नहीं लेकिन जाने से पहले आप भी प्रेस कांफ्रेस करेंगे न, सूट न सही नया कुर्ता ही सही.
  

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Saturday, November 29, 2008

शहादत से ज्यादा हत्या है.

बुधवार की रात से मुम्बई में जो कुछ हुआ उसके बारे में लिखने की कोई इच्छा नहीं, बावजूद इसके कि उस दिन पेहली बार टी वी पर कुछ देख के इतना डर लगा, मेरे घर से एक घंटे की दूरी पर वो सब हुआ जो देख कर १०० करोङ लोगों का खून खौल उठा. डर, गुस्सा, आक्रोश, क्या कुछ नहीं मेह्सूस किया? लेकिन यहां लिखने की कोई इच्छा नही हुई. मेरे बाकी ब्लोगर भाई लोग ने काफी कुछ लिखा और मेरी भावनाऐं भी बहुत सारों की बातों मे निहित थीं.

शनिवार की रात साढे नौ बजे, जब मुठ्भेङ खत्म हो चुकी है, ज़िन्दगी ढर्रे पे आने लगी है, टीवी पे एक बीजेपी और एक काँग्रेस का नेता कुत्तों की तरह इस बात पे भौंक रहे है कि कल और आज सुबह के अखबारों में आतंकवाद के नाम पे दिल्ली की जनता से वोट हमने नहीं तुमने मांगे हैं.... भौं भौं भौं भौं .. हटाओ हरामजादों को मेरे सामने से.

एक और न्यूज चैनल पे कुछ ऐसा आ रहा है जो कि मुझे मजबूर कर रहा है यहां लिखने के लिये. हलक में लाउडस्पीकर फिट किये टीवी ऍकर लगातार चिल्ला रहा है कि "हम आपके लिये लाये हैं हेमंत करकरे की मौत का सच"

अगर इस रिपोर्ट पर भरोसा करुं तो हेमंत करकरे की मौत आतंकवादियों से लङते हुए नही हुई, बल्कि इस तरह हुई कि इसको सिर्फ एक बुरा इत्तिफाक ही कहा जा सकता है. आतंकवादियों को एक गाङी की जरुरत थी और सामने आ गये हेमंत करकरे इनके साथ एसीपी काम्ते और सालस्कर भी, तीनों एक ही गाङी में. उन्होने ताबङतोङ गोलियां चलायी और इन तीनों को मार के गाडी लेके भाग निकले आतंकी.

दुख ये है कि ये तीन काबिल अफसर सिर्फ इसलिये मर गये की हमारी पुलिस अब भी इतनी संसाधनहीन है कि उनके पास इतने भीषण हमले के समय मे भी ढंग के हथियार नहीं थे. बुलेट प्रूफ़ जैकेट्स ऐसी कि उनको भेद कर करकरे के शरीर मे ३ गोलियां दाखिल हो गयीं. निकम्मे और कब्र में पैर लटकाये नेताओं के पास बुलेट प्रूफ़ गाङियां भी है और गार्ड्स भी. लेकिन मुम्बई ऍ टी एस के चीफ़ और ऍ सी पी एक आतंकवादी की उन गोलियों के शिकार हो गये जो उनको मारने से ज्यादा गाङी हथियाने के लिये चलायी गयी थी. मारने वालों को आम जनता और एक आई पी एस अफसर को मारने मे कोई भी फर्क नही मैहसूस नही हुआ होगा. सिर्फ एक साधारण सी गाङी में बैठे तीन असाधरण सिपाही सिर्फ संसाधनहीनता के कारण मार दिये गये और हमें मजबूर होकर उनहें शहीद कैहना पङता है.
 
शर्म आती है, दो हफ्ते पैहले चन्द्र्यान की सफलता मे जशन मनाने वाले हिंदुस्तान के सबसे महत्व्पूर्ण शहर की पुलिस सिर्फ १० आतंकियो के सामने लूली लंगङी हो गयी, उनकी एके ४७ और हथगोलों के सामने लाठी और दुनाली बंदूक वाली मुम्बई पुलिस विदूषक जैसी नजर आयी.


अगर आपको पढ के बुरा लगे तो लगे, मेरी नजर में इन तीन जियालों की मौत शहादत से ज्यादा हत्या है, जिसमें पुराने जमाने की घिसी पिटी डंडा छाप पुलिस व्यवस्था भी आतंकवादियो के बराबर की दोषी है.

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Wednesday, November 26, 2008

कहां मिलेगा जवाब ?

अकसर २ कौङी की बकवास को ब्रेकिंग खबर बताने वाले इन्डिया टीवी पर अभी एक ऐसी खबर दिखायी पङ गयी जिसको फिलहाल कोई दूसरा चैनल प्रमुखता से प्रसारित नहीं कर रहा है,

लेकिन खास बात ये है कि आज खबर बकवास नहीं (लगता है कि आज रजत जी छुट्टी पे हैं)कही जा सकती, बल्कि ऐसी है कि फ्रस्ट्रू को आज की फ्रस्ट्रेशन दे गयी. खबर है मुम्बई पुलिस के भूतपूर्व महानायक प्रदीप शर्मा के बारे में, जिसको कभी मुम्बई पुलिस में "किसी को उत्तरदायी नहीं" टाइप का विशेष दर्जा मिला हुआ था. उन खास मुठ्ठी भर पुलिस वालों मे से एक जिन्होने ९० के दशक में मुम्बई पर राज करने वाले अन्डर्वल्ड की जङों को उखाङ के अरुन गवली, सालेम और छोटा राजन जैसों के ही हाथ में रख दिया था. महाराष्ट्र के पुलिस महानिदेशक ने आज अदालत में बयान दिया है की प्रदीप शर्मा के आतंकवादियो से रिश्ते हैं. काफी आरोप पैहले भी लगे हैं और कुछ माह पेहले उनको बर्खास्त भी किया जा चुका है. 

आप को शायद ये लगे कि इतना पुराना मुर्दा मैं आज अचानक क्यूं उखाङने लग गया. आज की ये खबर सुनके मुझे मुम्बई पुलिस की क्राइम ब्रांच के दो और मशहूर नाम याद आ गये, सचिन वाजे और दया नायक. मुम्बई पुलिस जो कि आज तक अन्डर्वल्ड को खत्म करने के कारनामे के लिये गर्व मेह्सूस करती है, इन तीन नामो के बिना ये कभी न कर पाती. क्या आप भरोसा करेन्गे कि अकेले प्रदीप के नाम पे ११२ ऐसी मुठ्भेङ दर्ज हैं जिनमे अपराधी मारे गये. दया नायक के नाम पर १०० से ज्यादा का आँकङा और सचिन वाजे भी बराबर के साथी.

इन आँकङो के अलावा एक और समानता है इन तीनों में, उस वक्त के ये तीनो सुपरसटार् आज नौकरी के बाहर हैं. और तीनो लगभग एक ही से हालातों मे नौकरी से निकाले गये या नौकरी छोङने पर मजबूर हुए. विवादो से घिरे हुए, अपराधियों से रिश्तों के आरोप, आय से ज्यादा सम्पत्ती, एक गैंग से पैसा लेकर दुसरे के सद्स्यों को मारना, वगैरह वगैरह.

आरोप सही भी हो सकते हैं, पूरी सम्भावना है. बिना सबूत के एक के साथ शायद कुछ कार्यवाही हो सकती है, तीनो के साथ सम्भव नही लगती. लेकिन भईया मुझे तो ये भी सम्भव नहीं लगता की इन् सबके अपराधियों से रिश्ते अभी बने, आय से ज्यादा सम्पत्ती अभी आयी और एक गैंग से पैसा लेकर दुसरे के सद्स्यों को जाहिर है कि अभी अभी तो नही ही मारा होगा.

क्युंकि पिछले कई सालो से ये सब खाकी शेर मुम्बई पुलिस की सक्रिय टीम से ऐसे बाहर बैठे हैं जैसे कि ग़्रेग चैपल ने दादा को बैठा दिया था. ये सब कुछ अगर हुआ है तो शुरु तब हुआ होगा जब ये भाई लोग हर ओवर में २ विकेट उङा रहे थे. क्या आपने सोचा है कि ११२ एनकाउन्टर करने के लिये आपको ११२ बार ये पता होना चाहिये कि एनकाउन्टर कब, कहां, किसका करना है. जाहिर है कि इसके लिये अन्डर्वल्ड मे रिश्ते होने ही चाहिये. अन्डर्वल्ड के अन्दर की खबर आकाशवाणी से नहीं मिलती, ये तो इनके तत्कालीन आकाओं को मुम्बई पुलिस में पता ही होगा. अगर एक गिरोह से खबर पा के दुसरे के सदस्य को मारने में उनको तब कोई बुराई नजर नहीं आयी तो फिर आज पैसे लेकर दुसरे  के सदस्य को मारने में इन्हें क्युं पाप नजर आ रहा है? काम तो वही है ना? और रही बात पैसे लेने की, आय से अधिक सम्पत्ति जमा करने की, तो जरा अपनी गिरेह्बान मे झाँक के देखें ये बङे बङे नेता या पुलिस अफसर जो आज इन जैसे अफसरों को किनारे लगाने में लगे हैं, अगर अपनी गिरेह्बान मे ना झाँक पायें तो मुम्बई के किसी भी ट्रैफिक सिग्नल पे खङे पाँडु की जेब मे सुबह और शाम को झाँक ले. आय से ज्यादा सम्पत्ति की प्रतिदिन प्रगति का फोर्मुला समझ में आ जायेगा.

मुझे नहीं लगता कि मुम्बई पुलिस में ईमानदार लोगो कि फौज खडी है. तो फर्क क्या है? शायद फर्क ये होगा कि बाकी सब पुलिस वाले आय के मुकाबले इतनी ज्यादा कमाई नही करते होगें, मतलब थोङा बहुत तो चलता है लेकिन ऐसा भी नहीं है कि अत्त मचा दो. प्रदीप के उपर सैकङो करोङ की सम्पत्ति कमाने का आरोप है. अब सोचो भैया बाकी के दरोगा भी तो इन्सान हैं, क्या गुजरती होगी उनके दिल पे? अखिल भारतीय स्तर का फ्रस्ट्रू होने के नाते मैं अच्छी तरह समझ सकता हूं उन बेचारो की फ्रस्ट्रेशन. सीने पे सांप न लोट जाते होंगे? क्या मुँह दिखाते
होंगे बेचारे अपनी बीवियों को, आप लोग ने तो कतई भोकाल मचा दिया, अबे क्या छाती पे धर के उपर ले जाओगे? हद हो गयी यार इतना तो अच्छे अच्छे नेता नही लपेट पाते पुरी ज़िन्दगी मे जितना आपने अन्दर कर लिया कुछ ही सालों मे. अब भुगतो.

मैं ऐसा करके ये नही कैह रहा हूं कि ये सब बेदाग हैं. मुझे तो भैया वो कहावत याद आ गयी की शरीफ वो है जो पकङा न जाये. कानूनन तो ये भी (अगर आरोप सिध्ध हो जाये) अपराधी होंगे लेकिन फिर सच्चा पुलिस वाला कौन सा है? सच ये है कि ये लोग मुम्बई पुलिस के लिये बलि के बकरे के समान हैं, जब तक जरुरत रही खूब काम लिया, खिलाया पिलाया, कुछ भी करने की छूट दी और अब जब जरुरत नही है तो सूली पे टाँग दो, अरे खां मखाँ मीडिया को मसाला उपलब्ध करवाते रहंगे यार . ये नामुमकिन है कि अगर इन्होने कछ ग़लत किया है तो ये करने की हिम्मत इनको तब उसी कुर्सी पर बैठे किसी पुलिस महानिदेशक या गृह मँत्री ने नही दी होगी जिस पर बैठा कोइ पुलिस महानिदेशक या गृह मँत्री अब इनसे पीछा छुङाना चाहता  है.

क्या होगा प्रदीप का? मुझे नहीं लगता कि इनकी वापसी होगी, होगी भी तो वो अन्दाज़ नहीं होगा. सवाल ये है कि इन जैसे अफसरो की जरुरत क्युं पङी? और इससे भी बङा सवाल ये है कि कभी सङक छाप गुंडे रहे गवली, राजन और सलेम इतने बङे कैसे हो गये कि उनको खत्म करने के लिये ये बलि के बकरे पैदा करने पङे. 

कहां मिलेगा इस सवाल का जवाब, कहां मिलेगा भाई आज की फ्रस्ट्रेशन का इलाज ? शायद चौराहे पे खङे किसी पांडु की जेब मे.

और ये देखिये अभी अभी टी वी पर इस माह के आतंकवादी हमले की खबर आने लगी है, न जाने मुम्बई की जमीन पे और कितने खूनी धब्बे बनने बाकी हैं, कोइ बलि का बकरा है आपके पास इसके लिये पुलिस महानिदेशक जी.

और क्या सुन रहे हैं क्या शिवराज पाटिल जी, सूट पे इस्त्री करवा लीजिये कल का दिन बहुत प्रेस काॅफ्रेंस करनी होंगी.

Monday, November 24, 2008

बोहनी तो हो गयी

कल जब चिठ्ठा लिखना शुरू किया था तो सोचा नही था कि पैहले दिन ही इतने लोग इतनी शुभकामनायें दे देंगे, सचमुच बडा अच्छा लगा. बोहनी तो झकास हुई है भाई लोग, अब देखें कि दुकान आगे चलती है या खोमचा उठा के आगे बढना पडेगा, अल्लाह न करे यार.

खुशी इस बात की और भी ज्यादा है कि न सिर्फ लोगों ने इसे पढा बल्कि अच्छे और नामचीन चिठ्ठाकार यहां अपने हस्ताक्षर छोड के गये हैं.

सबसे पैहले शुक्रिया राजीव भाई, आपकी मदद की जरूरत पडी तो जरुर तकलीफ दुंगा. वैसे राज ठाकरे ने मुझे पैहले ही काफी फ्र्स्ट्रेट किया हुआ है और उसी के बारे में अपने विचार मैं जब भी मौका मिलेगा यहां अवश्य रखूंगा.
संगीता जी, आपका बहुत बहुत धन्यवाद. आगे भी आती रहियेगा.
धन्यवाद परम्जीत जी, यूसुफ भाई, सतीश जी, रतन शेखावत जी. आप लोगो से आगे भी इस ब्लोग पर आने की अपेक्षा है.
नारद मुनि आपका आशीष रहे फ्रस्ट्रू पर ,आप जैसे चिठ्ठाकारी के पुराने चावल जब हम जैसे नौसिखयों को शुभकामनायें दें तो और क्या चाहिये. आदत के अनुसार यहां जो भी लिखा जाये उसको प्रचारित करते रहियेगा.
घुघूती बासूती, मैने पैहले पढा था आपका चिठ्ठा इसलिये बता नही सकता जो हर्ष हुआ आपके पदचिन्ह यहां देख कर .
पी डी, अभिषेक, और सागर भाई, थैंक्यू वेरी मच फोर योर वैल विशेज.
और सबसे बाद में रचना जी, बहुत अच्छा लगा आपका सन्देश देख के. आपका परिचय पढ के बहुत हर्ष हुआ. कृप्या आती रहिये, अगर कुछ इस लायक लिख पाऊं जो आप पढने लायक समझें तो आपकी आलोचना सुनने की आशा करता हूं.

आप सबके उत्साहवर्ध्न के अलावा कविता वाचक्नवी जी ने अपने ब्लॉग में मेरे परिचय के बारे मे भी बात की, पढ के बडा सन्तोष हुआ कि चलो चिठ्ठा जगत में इस नाचीज के कार्यक्र्म को लोग स्व्तः ही प्रायोजित करने लायक समझ रहे हैं. अन्धे को क्या चाहिये? आधी पौनी ऑख, और हमारे जैसे फ्र्स्ट्रेटिड चिठ्ठाकार को चाहिये ज्यादा से ज्यादा वाचक.
कविता वाचक्नवी जी बहुत धन्यवाद, ईश्वर आपका स्पौन्डिलाइटिस किसी रिश्वतखोर पुलिस वाले को दे दे.

अगर ईश्वर की मर्जी ठीक रही तो यहां आप सबको जरुर फ्रस्ट्रू की जायज फ्रस्ट्रेशन का ताप मैहसूस होता रहेगा, आप सबसे सम्पर्क बना रहेगा.

फ्रस्ट्रू

Sunday, November 23, 2008

हम भी आ गये भइया

इन्टरनेट पर हिंदी चिठ्ठकारी की उभरती हुई दुनिया के बारे में सुना तो था लेकिन ये इत्ती समृद्ध होगी ये अन्दाजा नहीं था. जब इन्टरनेट में झाँका तो पता चला की भाई यहाँ तो लोगबाग धुँआधार बल्लेबाजी कर रहे हैँ, और हम हैं कि अभी तक ये ही सोच रहे थे कि अपने विचारों की गंगा आखिर किस गंगोत्री से निकालें ?? लेकिन धन्य हैं मेरे ये सब ब्लोगर भाई जो इतना अछ्छा काम कर रहे हैं.. इस फ्रस्ट्रू को फ्र्स्ट्रेशन निकालने का एकदम सही मार्ग़ दिखा दिया. अब सोचता हूँ कि मैं भी हाथ आजमा लूं. ज़िसे देखो मुंहु उठा के ब्लोग लिख रहा है और पूरी आजादी से लिख रहा है. बच्चन बाबू से लेके बब्ब्न पनवाडी तक सब चालू हैं धडाधड, और हो भी क्यू ना ? दोस्त, बॉस, पडोसी, रिश्तेदार या किसी भी मशहूर शख्सियत को जिस बात पे जितना चाहो उतना कोसने की प्रजातांत्रिक आजादी और किसी की हिंसक शारिरिक प्रितिक्रिया का भी डर नहीं. ऐसा कमाल का माध्यम दूसरा कोई नही है. इसलिये सोचा की शुरू कर ही देते हैं.
मेरी इस नयी शुरुवात के लिये मैं शुक्र्गुजार हूं उन हिंदी ब्लोगर साथियों का जिनकी लेखनी ने इतनी प्रेणना दी कि क़ुछ ही हफ्तो में मैं ब्लोगर बन बैठा, जबकि सोफ्ट्वेयर डैवलपर बनने में २५ वर्ष लगे थे. आज ये ब्लोग शुरु करते समय थोडा खुश हूं और थोडा डरा हुआ भी हूं .. डर है जैसा परीक्षा के समय होता था. मेरी जमीन को मैं सचमुच अपनी जमीन मानता हूं यहां आजादी है सच बोलने की, बात कैह सकने की. उम्मीद है कि शायद समान विचार वाले मित्र मिलेंगे, और मेरे विचारों की सही परख होगी, फ्रस्ट्रू की फ्र्स्ट्रेशन कितनी जायज है इसकी जाँच होगी.

आते रहियेगा, नमस्कार.