Wednesday, November 26, 2008

कहां मिलेगा जवाब ?

अकसर २ कौङी की बकवास को ब्रेकिंग खबर बताने वाले इन्डिया टीवी पर अभी एक ऐसी खबर दिखायी पङ गयी जिसको फिलहाल कोई दूसरा चैनल प्रमुखता से प्रसारित नहीं कर रहा है,

लेकिन खास बात ये है कि आज खबर बकवास नहीं (लगता है कि आज रजत जी छुट्टी पे हैं)कही जा सकती, बल्कि ऐसी है कि फ्रस्ट्रू को आज की फ्रस्ट्रेशन दे गयी. खबर है मुम्बई पुलिस के भूतपूर्व महानायक प्रदीप शर्मा के बारे में, जिसको कभी मुम्बई पुलिस में "किसी को उत्तरदायी नहीं" टाइप का विशेष दर्जा मिला हुआ था. उन खास मुठ्ठी भर पुलिस वालों मे से एक जिन्होने ९० के दशक में मुम्बई पर राज करने वाले अन्डर्वल्ड की जङों को उखाङ के अरुन गवली, सालेम और छोटा राजन जैसों के ही हाथ में रख दिया था. महाराष्ट्र के पुलिस महानिदेशक ने आज अदालत में बयान दिया है की प्रदीप शर्मा के आतंकवादियो से रिश्ते हैं. काफी आरोप पैहले भी लगे हैं और कुछ माह पेहले उनको बर्खास्त भी किया जा चुका है. 

आप को शायद ये लगे कि इतना पुराना मुर्दा मैं आज अचानक क्यूं उखाङने लग गया. आज की ये खबर सुनके मुझे मुम्बई पुलिस की क्राइम ब्रांच के दो और मशहूर नाम याद आ गये, सचिन वाजे और दया नायक. मुम्बई पुलिस जो कि आज तक अन्डर्वल्ड को खत्म करने के कारनामे के लिये गर्व मेह्सूस करती है, इन तीन नामो के बिना ये कभी न कर पाती. क्या आप भरोसा करेन्गे कि अकेले प्रदीप के नाम पे ११२ ऐसी मुठ्भेङ दर्ज हैं जिनमे अपराधी मारे गये. दया नायक के नाम पर १०० से ज्यादा का आँकङा और सचिन वाजे भी बराबर के साथी.

इन आँकङो के अलावा एक और समानता है इन तीनों में, उस वक्त के ये तीनो सुपरसटार् आज नौकरी के बाहर हैं. और तीनो लगभग एक ही से हालातों मे नौकरी से निकाले गये या नौकरी छोङने पर मजबूर हुए. विवादो से घिरे हुए, अपराधियों से रिश्तों के आरोप, आय से ज्यादा सम्पत्ती, एक गैंग से पैसा लेकर दुसरे के सद्स्यों को मारना, वगैरह वगैरह.

आरोप सही भी हो सकते हैं, पूरी सम्भावना है. बिना सबूत के एक के साथ शायद कुछ कार्यवाही हो सकती है, तीनो के साथ सम्भव नही लगती. लेकिन भईया मुझे तो ये भी सम्भव नहीं लगता की इन् सबके अपराधियों से रिश्ते अभी बने, आय से ज्यादा सम्पत्ती अभी आयी और एक गैंग से पैसा लेकर दुसरे के सद्स्यों को जाहिर है कि अभी अभी तो नही ही मारा होगा.

क्युंकि पिछले कई सालो से ये सब खाकी शेर मुम्बई पुलिस की सक्रिय टीम से ऐसे बाहर बैठे हैं जैसे कि ग़्रेग चैपल ने दादा को बैठा दिया था. ये सब कुछ अगर हुआ है तो शुरु तब हुआ होगा जब ये भाई लोग हर ओवर में २ विकेट उङा रहे थे. क्या आपने सोचा है कि ११२ एनकाउन्टर करने के लिये आपको ११२ बार ये पता होना चाहिये कि एनकाउन्टर कब, कहां, किसका करना है. जाहिर है कि इसके लिये अन्डर्वल्ड मे रिश्ते होने ही चाहिये. अन्डर्वल्ड के अन्दर की खबर आकाशवाणी से नहीं मिलती, ये तो इनके तत्कालीन आकाओं को मुम्बई पुलिस में पता ही होगा. अगर एक गिरोह से खबर पा के दुसरे के सदस्य को मारने में उनको तब कोई बुराई नजर नहीं आयी तो फिर आज पैसे लेकर दुसरे  के सदस्य को मारने में इन्हें क्युं पाप नजर आ रहा है? काम तो वही है ना? और रही बात पैसे लेने की, आय से अधिक सम्पत्ति जमा करने की, तो जरा अपनी गिरेह्बान मे झाँक के देखें ये बङे बङे नेता या पुलिस अफसर जो आज इन जैसे अफसरों को किनारे लगाने में लगे हैं, अगर अपनी गिरेह्बान मे ना झाँक पायें तो मुम्बई के किसी भी ट्रैफिक सिग्नल पे खङे पाँडु की जेब मे सुबह और शाम को झाँक ले. आय से ज्यादा सम्पत्ति की प्रतिदिन प्रगति का फोर्मुला समझ में आ जायेगा.

मुझे नहीं लगता कि मुम्बई पुलिस में ईमानदार लोगो कि फौज खडी है. तो फर्क क्या है? शायद फर्क ये होगा कि बाकी सब पुलिस वाले आय के मुकाबले इतनी ज्यादा कमाई नही करते होगें, मतलब थोङा बहुत तो चलता है लेकिन ऐसा भी नहीं है कि अत्त मचा दो. प्रदीप के उपर सैकङो करोङ की सम्पत्ति कमाने का आरोप है. अब सोचो भैया बाकी के दरोगा भी तो इन्सान हैं, क्या गुजरती होगी उनके दिल पे? अखिल भारतीय स्तर का फ्रस्ट्रू होने के नाते मैं अच्छी तरह समझ सकता हूं उन बेचारो की फ्रस्ट्रेशन. सीने पे सांप न लोट जाते होंगे? क्या मुँह दिखाते
होंगे बेचारे अपनी बीवियों को, आप लोग ने तो कतई भोकाल मचा दिया, अबे क्या छाती पे धर के उपर ले जाओगे? हद हो गयी यार इतना तो अच्छे अच्छे नेता नही लपेट पाते पुरी ज़िन्दगी मे जितना आपने अन्दर कर लिया कुछ ही सालों मे. अब भुगतो.

मैं ऐसा करके ये नही कैह रहा हूं कि ये सब बेदाग हैं. मुझे तो भैया वो कहावत याद आ गयी की शरीफ वो है जो पकङा न जाये. कानूनन तो ये भी (अगर आरोप सिध्ध हो जाये) अपराधी होंगे लेकिन फिर सच्चा पुलिस वाला कौन सा है? सच ये है कि ये लोग मुम्बई पुलिस के लिये बलि के बकरे के समान हैं, जब तक जरुरत रही खूब काम लिया, खिलाया पिलाया, कुछ भी करने की छूट दी और अब जब जरुरत नही है तो सूली पे टाँग दो, अरे खां मखाँ मीडिया को मसाला उपलब्ध करवाते रहंगे यार . ये नामुमकिन है कि अगर इन्होने कछ ग़लत किया है तो ये करने की हिम्मत इनको तब उसी कुर्सी पर बैठे किसी पुलिस महानिदेशक या गृह मँत्री ने नही दी होगी जिस पर बैठा कोइ पुलिस महानिदेशक या गृह मँत्री अब इनसे पीछा छुङाना चाहता  है.

क्या होगा प्रदीप का? मुझे नहीं लगता कि इनकी वापसी होगी, होगी भी तो वो अन्दाज़ नहीं होगा. सवाल ये है कि इन जैसे अफसरो की जरुरत क्युं पङी? और इससे भी बङा सवाल ये है कि कभी सङक छाप गुंडे रहे गवली, राजन और सलेम इतने बङे कैसे हो गये कि उनको खत्म करने के लिये ये बलि के बकरे पैदा करने पङे. 

कहां मिलेगा इस सवाल का जवाब, कहां मिलेगा भाई आज की फ्रस्ट्रेशन का इलाज ? शायद चौराहे पे खङे किसी पांडु की जेब मे.

और ये देखिये अभी अभी टी वी पर इस माह के आतंकवादी हमले की खबर आने लगी है, न जाने मुम्बई की जमीन पे और कितने खूनी धब्बे बनने बाकी हैं, कोइ बलि का बकरा है आपके पास इसके लिये पुलिस महानिदेशक जी.

और क्या सुन रहे हैं क्या शिवराज पाटिल जी, सूट पे इस्त्री करवा लीजिये कल का दिन बहुत प्रेस काॅफ्रेंस करनी होंगी.

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