Friday, December 5, 2008

महाराष्ट्र के कदम बिहार की तरफ

पिछले दिनो मुम्बई मे हुए हादसों के बाद महाराष्ट्र की राजनीति मे उठापटक की आंधी गयी. पाटिल और फिर देशमुख के जाने के बाद हर उस नेता के ख्वाबों मे मंत्रालय के सपने आने लगे होंगे जो कभी भी उन कुर्सियों के आस पास से भी गुजरा होगा.  खैर, इनके जाने के बाद आज शाम आखिर दोनों रिक्त पदों के लिये नाम कॉग्रेस आलाकमान के कमरे के बाहर आये, अशोक चव्हाण और छगन भुजबल. और इन नामों के साथ ही बाहर आ गया नारायण राणे का फ्रस्ट्रेशन. 
जिस छिछोरेपन के लिये जनता पिछले दिनों से इन बेशर्मों के मुंह पे थूक रही थी उसका बेहतरीन मुजाहिरा इस लालची आदमी ने आज फिर पेश कर दिया. नारायण राणे ने कुछ समय पैहले अपने गले से शिव सेना का पट्टा उतार के सोनिया गांधी की खङाऊ को सिर पे रखा था सिर्फ मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिये. उनको समझ आ गया था कि बुढाते हुए बाल ठाकरे अपना उत्तराधिकारी उध्ध्व को ही बनायेंगे, और मुख्य मंत्री की कुर्सी पर अपनी भारी तशरीफ रखने की तमन्ना शिव सेना में रहते पुरी नहीं होगी
लेकिन आज शाम जब अशोक चव्हाण बाजी मार गये तो बेचारे राणे साहब को अपनी हालत धोबी के कुत्ते जैसी लगी होगी और मीडिया के सामने फ्रस्ट्रेशन बाहर आ गयी, आज इनको सोनिया जी पे भी भरोसा नहीं रहा और अशोक चव्हाण तो दुनिया का सबसे नकारा आदमी है. खैर ये सब तो नेता होने के नाते स्वाभाविक छिछोरापन है जाने दीजिये साहब. 
अब सवाल ये है कि राणे साब करेंगे क्या?? यूं दुत्कार दिये जाने के बाद पार्टी में तो रुकना इनके  स्वाभिमान को मंजूर न होगा, शिव सेना मे वापसी नहीं हो सकती. एन सी पी वाले भी घास नहीं डालेंगे. तो फिर ?? अपनी पार्टी बनायेंगे ? शायद हां, यही सबसे अच्छा संभव विकल्प यही है. अगर २०, २५ सीट मिल जायें तो सत्ता की धुरी मे आ जाने का अच्छा चांस बनता है. 

लेकिन अगर राणे साहब ने अपनी पार्टी बनायी तो उसक असर क्या होगा महाराष्ट्र की राजनीति मे ? ध्यान देने वाली बात ये है कि तस्वीर यहां बिलकुल उत्तर प्रदेश जैसी नजर आती है.
कॉग्रेस, बीजेपी,सपा, और बसपा जैसा उलझा हुआ समीकरण यहां भी. कॉग्रेस, बीजेपी, एनसीपी, शिव सेना और मनसा के बाद नारायण राणे की पार्टी. 
बिहार में भी बिलकुल ऐसे ही उलझे हुए समीकरण हैं. छोटी छोटी क्षेत्रीय पार्टियों ने स्पषट बहुमत वाली सरकार बनना बङा मुशकिल और हमेशा जुगाङ बाजों की पौ बारह.

अब महाराष्ट्र में जो आने वाले विधानसभा चुनाव होंगे (चाहे जब भी हो) वो आज तक के सबसे अलग चुनाव होंगे. शायद पहली बार ऐसा होगा जब इतनी सारी पार्टिया मैदान मे होंगी. और सब के सब धारदार खिलाङी. कोई आश्चर्य नहीं अगर यहां भी यूपी और बिहार की तरह ऐसे लोग सत्ता के लालच में साथ आ खङे हों जो आज एक दुसरे के खून के प्यासे हैं.  और अगर ये पार्टिया है तो इनको वोट भी मिलेंगे, इसलिये मुझे तो पुरा विश्वास है कि बिहार और यूपी की राजनीति की परछाई महाराष्ट्र में आने वाले चुनाव में नजर आयेगी.
नारायण राणे और राज ठाकरे जैसे लालची और कुर्सी के भूखे नेताओं के उठाये हुये ये कदम बिलकुल विनाषकारी हैं. जिन प्रदेशो को ये नेता आज हिकारत की नजर से देखते हैं इनके पीछे महाराष्ट्र की राजनीति ने उन प्रदेशों की ओर ही बढी है और निश्चित रूप से महाराष्ट्र भी.

देखना मेरे महारष्ट्रियन दोस्तों आपके और मेरे जैसे जाहिल भईयाओं के बीच का एक फर्क मुझे तो खत्म होता दिख रहा है. वैलकम टू द फ़ैमिली...

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3 Comments:

At December 6, 2008 at 12:20 AM , Blogger उपाध्यायजी(Upadhyayjee) said...

Poor analysis. Subject is Bihar but you tried comparing with UP. Dono states me single party ki majority hai. Maharashtra ki tulna bas maharasthtra se hi ho sakti hai. There is no party there in Maharashtra. Kewal ek ek gundo ki party hai wahan. Budhe Thakre ki party, Raj thakre ki party, Sharad pawar ki party, Deshmukh ki party, usme ek Rane ki bhi party ho jayegi.

 
At December 6, 2008 at 1:25 AM , Blogger फ़्र्स्ट्रू said...

बात ये नहीं है कि आज वहां कितनी पार्टियों की सरकार है, बात ये है कि छोटी छोटी पार्टियों ने कैसे कमजोर सरकारो को जन्म दिया? आज भले ही मायावती के पास बहुमत हो, लेकिन क्या याद है यूपी में बीजेपी और मायावती की ६-६ महिने वाली सरकार? कैसे लालू ने राबङी को सीएम बनाया था? कैसे मुलायम ने जगदम्बिका पाल को एक रात के लिये सीएम बनाया था? इस तरह के हालात वहां कैसे पैदा हो गये? इन छोटी पार्टियों के सामने देश को जवाब देने का डर नहीं होता. इसीलिये राज ठाकरे सिर्फ मराठी वोट पर निशाना लगा सकते हैं और लालू मुलायम यादव वोट पे. और जब इन जैसे लोग अपनी अपनी सीटो का सौदा करते हैं तो बदले मे कमजोर और भ्रष्ट सरकारों का जन्म होता है. और ऐसी ही अवसरवादी और भ्रष्ट सरकारों ने यूपी और बिहार को वहां पहुंचाया है जहां वो हैं और एनसीपी और मनसे जैसी पार्टियां (और शायद आने वाली राणे की पार्टी) महारष्ट्र की राजनीति को उधर ही लेके जायेगी. सिर्फ़ अगले चुनाव तक इंतजार करिये, शायद लालच और मजबूरी से बनी महारष्ट्र की सरकार आपके सामने होगी.

 
At December 7, 2008 at 11:59 AM , Blogger हिज(ड़ा) हाईनेस मनीषा said...

भाईसाहब,आपका लिखना आग्नेय है लेकिन क्या बात है आपसे किसी तरह का संपर्क नहीं हो सकता है। जरा भाईसाहब के मोबाइल 09224496555 पर एक sms करिये ताकि सम्पर्क हो सके।
मनीषा नारायण

 

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